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गाँव की सरकार

सामाजिक मुद्दे
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उत्तर प्रदेश में इसी महीने छोटी सरकार का गठन हो गया है। निर्वाचन आयोग निस्पक्ष चुनाव करवाकर प्रफुल्लित है हालाँकि पूरे प्रदेश में जोर जबरदस्ती और बूथ कैप्चरिंग की भारी शिकायतें सामने आई हैं पर उनकी कोई सुनवाई नहीं हुयी और होती भी क्यों ,शिकायत की सुनवाई करने बाले को निर्वाचन आयोग को सब कुछ ठीक की रिपोर्ट दाखिल करने का अप्रत्यक्ष दबाव था।
यह चुनाव लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है क्योंकि इसी चुनाव से देश की प्रगति तय होती है। ग्रामपंचायत का मुखिया ही देश के अंतिम व्यक्ति तक विकास योजनाओं को पहुचाने के लिए अधिकृत है।राज्य सरकार और केंद्र सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के सफल क्रियान्वयन की जिम्मेदारी भी इसी प्रतिनिधि के कंधो पर होती है। हालाँकि केंद्रीय निर्वाचन आयोग और राज्यनिर्वाचन आयोग अभी तक इस चुनाव को लेकर गंभीर नहीं है और इस चुनाव को कराने की जिम्मेदारी स्थानीय निर्वाचन आयोग पर है जिसका प्रतिनधि और सर्वोच्च अधिकारी जिले का जिलाधिकारी है।
इस वर्ष चुनाव के परिणाम से पहले ही कद्दावर प्रधान अपनी कुर्सी बचाने के लिए 10 लाख से 50 लाख रुपये तक बाँट चुके थे। शराब और गिफ्ट इन चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण प्रचार सामिग्री हैं। कई गाँव में प्रत्याशियों ने साड़ी से लेकर गहने तक खूब बांटे और जमकर पैसे लुटाए। विशेष विरादरी के लोगों के प्रतिनधि ख़रीदे गए। छुटभैयों की विशेष डिमांड रही और दबंगो का इस्तेमाल लोगों को धमकाने के लिए जमकर किया गया। चुनाव परिणाम के बाद भी गांवों में वोट ना देने को लेकर जमकर कहर बरसा और गोलीबारी की घटनाएं अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहीं है।
प्रश्नगत बात यह है कि जो प्रधान चुनाव जीतने के लिए 10-20 लाख का निवेश कर चुके हैं वो अब विकास कार्य ईमानदारी से करायेगें? जिस गांव में लोग चुनाव में एक ईमानदार प्रत्याशी को दरकिनार कर एक दबंग को चुनने पर मजबूर हुए वो प्रधान के भ्रष्टाचार की शिकायत कर सकेंगे? जो जनता गांव के छुटभैयों के सामने नतमस्तक हो गयी वो जनता क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने हक़ की लड़ाई लड़ सकेगी।
त्रिस्तरीय शासन प्रणाली भारत के विकास की सबसे कमजोर कड़ी है हालांकि इस प्रणाली का उदय भारत के अंतिम शोषित व्यक्ति तक शासन की योजना पहुचाने के लिए हुआ था पर पिछले 5 दशक से ग्राम पंचायत लूट खसोट के साधन बन गए हैं। सरकार की हर महत्वाकांक्षी योजना प्रधान के घर में से होकर निकलती है और इस योजना का लाभ केवल प्रधान के चंद चमचों को ही मिल पाता है ऐसे में केंद्र और राज्य में किसी की भी सरकार हो सरकार केवल प्रधान की ही चलेगी और इतिहास गवाह है कि 10 प्रतिशत ईमानदार प्रतिनिधि छोड़ दिए जाएं तो 90 प्रतिशत प्रधानों ने सरकारी धन से केवल अपनी कोठियों का निर्माण ही किया है।
भविष्य में यदि इस निर्वाचन में जनता का डर दूर नहीं किया गया तो जनता और चुनाव करवाने बाले कर्मचारियों को सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम नहीं किया गया ,स्थानीय स्तर के नेताओं का हस्तक्षेप बंद नहीं किया गया तो आगामी 50 साल तक विकास अंतिम जरूरतमंद तक विकास नहीं पहुँच सकेगा और भारत की कोई भी सरकार भारत को विकसित राष्ट्र नहीं बना पायेगा।

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